ये भी कोई तरीका है, सपनों को चंद मुश्किलों के हाथ बेंच दिया? याद रहे- जब भी खुद में झाँकोगे
सपनों की एक कोंपल हरदम जीवित पाओगे! सपनों की जिजीविषा को कब रौंद पाया है वक़्त के पहिए ने?
और तब- उसकी घुटन तुम्हें अपने दिल पर महसूस होगी……………
=>अभिषेक अग्निहोत्री
Sunday, 23 September 2012
क्या वज़ह है तेरे चेहरे पे उदासी क्यों है, तू मेरे साथ है दूरी ये ज़रा सी क्यों है? अभी लौटा हूँ समंदर-सी प्यास दफ़ना के, हरेक शय में गुज़ारिश की हवा-सी क्यों है?