Tuesday, 25 September 2012

ये भी कोई तरीका है,
सपनों को 
चंद मुश्किलों के हाथ बेंच दिया?
याद रहे-
जब भी खुद में झाँकोगे
सपनों की एक कोंपल
हरदम जीवित पाओगे!
सपनों की जिजीविषा को
कब रौंद पाया है वक़्त के पहिए ने?

और तब-
उसकी घुटन
तुम्हें अपने दिल पर महसूस होगी……………
=>अभिषेक अग्निहोत्री

Sunday, 23 September 2012




क्या वज़ह है तेरे चेहरे पे उदासी क्यों है,

तू मेरे साथ है दूरी ये ज़रा सी क्यों है?
अभी लौटा हूँ समंदर-सी प्यास दफ़ना के, 
हरेक शय में गुज़ारिश की हवा-सी क्यों है? 

=>अभिषेक अग्निहोत्री