Tuesday, 25 September 2012

ये भी कोई तरीका है,
सपनों को 
चंद मुश्किलों के हाथ बेंच दिया?
याद रहे-
जब भी खुद में झाँकोगे
सपनों की एक कोंपल
हरदम जीवित पाओगे!
सपनों की जिजीविषा को
कब रौंद पाया है वक़्त के पहिए ने?

और तब-
उसकी घुटन
तुम्हें अपने दिल पर महसूस होगी……………
=>अभिषेक अग्निहोत्री

No comments:

Post a Comment